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Meera Padawali – The Spiritual Journey of Meera Bai | A Collection of Poems and Krishna Bhajans Celebrating Divine Love, Faith and Devotion

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सगुण भक्‍त‌ि-धारा के कृष्‍ण-भक्तों में मीराबाई का श्रेष्‍ठ स्‍थान है। वे श्रीकृष्‍ण को ईश्‍वर-तुल्य पूज्य ही नहीं, वरन् अपने पति-तुल्य मानती थीं। कहते हैं कि उन्होंने बाल्यावस्‍था में ही श्रीकृष्‍ण का वरण कर लिया था।

माता-पिता ने यद्यपि उनका लौकिक विवाह भी किया, लेकिन उन्होंने पारलौकिक प्रेम को प्रश्रय दिया तथा पति का घर-बार त्यागकर जोगन बन गईं और गली-गली अपने इष्‍ट, अपने आराध्य, अपने वर श्रीकृष्‍ण को ढूँढ़ने लगीं। उन्होंने वृंदावन की गली-गली, घर-घर, बाग-बाग और पत्तों-पत्तों में गिरधर गोपाल को ढूँढ़ा, अंततः जब वे नहीं मिले तो द्वारिका चली गईं।

मीराबाई ने अनेक लोकप्रिय पदों की रचना की। हालाँकि काव्य-रचना उनका उद‍्देश्य नहीं था। लेकिन अपने आराध्य के प्रति निकले उनके शब्द ही भजन बन गए और लोगों की जुबान पर चढ़ गए।

उनके पद राजस्‍थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं बंगाल में बहुत लोकप्रिय हुए और आज भी रेडियो एवं टेलीविजन पर सुने जा सकते हैं। प्रेम-भक्‍त‌ि में मग्न होकर गाए उनके पद-गीत यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उनके भक्‍त‌ि-रस में रचे-बसे पदों को संकलित किया गया है। आशा है, सुधी पाठक इस पुस्तक के माध्यम से मीराबाई के भक्‍त‌ि-सागर में गोते लगाएँगे।


From the Publisher

Meera Padawali by Neelotpal

Meera Padawali by NeelotpalMeera Padawali by Neelotpal

आशा है, पाठक इस पुस्तक के माध्यम से मीराबाई के भक्‍त‌ि-सागर में गोते लगाएँगे।.

मीराबाई (1498-1573) सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और कवयित्री थीं। उनकी कविता कृष्ण भक्ति के रंग में रंग कर और गहरी हो जाती है। मीरा बाई ने कृष्ण भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है। मीरा कृष्ण की भक्त हैं।

मीराबाई का जन्म सन 1498 ई. में मेड़ता (कुड़की) में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं। मीरा का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। उदयपुर के महाराजा भोजराज इनके पति थे जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, किन्तु मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं। मीरा के पति का अंतिम संस्कार चित्ततोड़ में मीरा की अनुपस्थिति में हुुुआ। पति की म्रत्यू पर भी मीरा माता ने अपना श्रंगार नही उतारा, क्योंकि वह गिरधर को अपना पति मानती थी।

मीरा कहती हैं – मेरे तो बस श्री कृष्ण हैं जिसने पर्वत को ऊँगली पर उठाकर गिरधर नाम पाया. उसके अलावा मैं किसी को अपना नहीं मानती. जिसके सिर पर मौर का पंख का मुकुट हैं वही हैं मेरे पति. मेरे ना पिता हैं, ना माता, ना ही कोई भाई पर मेरे हैं गिरधर गोपाल.

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राह तके मेरे नैन अब तो दरस देदो कुञ्ज बिहारी मनवा हैं बैचेन नेह की डोरी तुम संग जोरी हमसे तो नहीं जावेगी तोड़ी हे मुरली धर कृष्ण मुरारी तनिक ना आवे चैन राह तके मेरे नैन …….. मै म्हारों सुपनमा लिसतें तो मै म्हारों सुपनमा अर्थ: मीरा अपने भजन में भगवान् कृष्ण से विनती कर रही हैं कि हे कृष्ण ! मैं दिन रात तुम्हारी राह देख रही हूँ. मेरी आँखे तुम्हे देखने के लिए बैचेन हैं मेरे मन को भी तुम्हारे दर्शन की ही ललक हैं.मैंने अपने नैन केवल तुम से मिलाये हैं अब ये मिलन टूट नहीं पायेगा. तुम आकर दर्शन दे जाओं तब ही मिलेगा मुझे चैन.

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Tulsi Dohawali by Raghav ‘Raghu’

हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ ‘रामचरितमानस’ के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास को उत्तर भारत के घर-घर में अकूत सम्मान प्राप्‍त है। राम की अनन्य भक्‍त‌ि ने उनका पूरा जीवन राममय कर दिया था। हालाँकि उनका आरंभिक जीवन बड़ा कष्‍टपूर्ण बीता; अल्पायु में माता के निधन ने उन्हें अनाथ कर दिया। उन्हें भिक्षाटन करके जीवन-यापन करना पड़ा। धीरे-धीरे वह भगवान् श्रीराम की भक्‍त‌ि की ओर आकृष्‍ट हुए। हनुमानजी की कृपा से उन्हें राम-लक्ष्मण के साक्षात् दर्शन का सौभाग्य प्राप्‍त हुआ। इसके बाद उन्होंने ‘रामचरितमानस’ की रचना आरंभ की। ‘रामलला नहछू’; ‘जानकीमंगल’; ‘पार्वती मंगल’; ‘कवितावली’; ‘गीतावली’; ‘विनयपत्रिका’; ‘कृष्‍ण गीतावली’; ‘सतसई दोहावली’; ‘हनुमान बाहुक’ आदि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं।

Raheem Dohawali by Ed. Vagdev

रहीम अर्थात् अब्दुर्रहीम खानखाना को अधिकतर लोग कवि के रूप में जानते है; लेकिन कविता ने उनका दूसरा पक्ष आवृत कर लिया हो; ऐसा नहीं है। रहीम का व्यक्‍त‌ि‍त्व बहुआयामी था। एक ओर वे वीर योद्धा; सेनापति; चतुर राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ थे तो दूसरी ओर कवि-हृदय; कविता-मर्मज्ञ; उदार चित्त; उत्कट दानी; मानवीयता आदि गुणों से ओत-प्रोत थे। रहीम का जीवन तीव्र घटनाक्रमों से भरा रहा। चार वर्ष की उम्र में पिता असमय बिछड़ गए। तीन पुत्र युवावस्‍था में ही एक-एक कर गुजर गए। एक धर्मपुत्र फहीम युद्ध में मारा गया। इसके बाद उपाधि और जागीरदारी छिन गई। इस प्रकार 7 2 वर्ष का उनका जीवन बारंबार कसौटी पर कसा गया; और इस रस्साकाशी ने उन्हें इस कदर तोड़कर रख दिया कि अंत समय में पुनः मिली उपाधि और सत्ता का भी वे उपभोगी नहीं कर सके।

Soor Padawali

कृष्‍ण-भक्‍त‌ि शाखा के कवियों में महाकवि सूरदास का नाम शीर्ष पर प्रति‌षष्‍ठ‌ित है। अपनी रचनाओं में उन्होंने अपने आराध्य भगवान् श्रीकृष्‍ण का लीला-गायन पूरी तन्मयता के साथ किया है। घनश्‍याम सूर के रोम-रोम में बसते हैं। गुण-अवगुण; सुख-दुःख; राग-द्वेष लाभ-हानि; जीवन-मरण—सब अपने इष्‍ट को अर्पित कर वे निर्लिप्‍त भाव से उनका स्मरण-सुमिरन एवं चिंतन-मनन करते रहे। सूदासजी मनुष्यमात्र के कल्याण की भावना से ओतप्रोत रहे। उनके अप्रयत्यक्ष उपदेशों का अनुकरण करके हम अपने जीवन को दैवी स्पर्श से आलोकित कर सकते हैं—इसमें जरा भी संदेह नहीं है। प्रस्तुत पुस्तक में सूरदासजी के ऐसे दैवी पदों को संकलित कियाग या है; जिनमें जन-कल्याण का संदेश स्‍थान-स्‍थान पर पिरोया गया है।

Meera Padawali by Ed.Nilotpal

सगुण भक्‍त‌ि-धारा के कृष्‍ण-भक्तों में मीराबाई का श्रेष्‍ठ स्‍थान है। वे श्रीकृष्‍ण को ईश्‍वर-तुल्य पूज्य ही नहीं; वरन् अपने पति-तुल्य मानती थीं। कहते हैं कि उन्होंने बाल्यावस्‍था में ही श्रीकृष्‍ण का वरण कर लिया था। माता-पिता ने यद्यपि उनका लौकिक विवाह भी किया; लेकिन उन्होंने पारलौकिक प्रेम को प्रश्रय दिया तथा पति का घर-बार त्यागकर जोगन बन गईं और गली-गली अपने इष्‍ट; अपने आराध्य; अपने वर श्रीकृष्‍ण को ढूँढ़ने लगीं। उन्होंने वृंदावन की गली-गली; घर-घर; बाग-बाग और पत्तों-पत्तों में गिरधर गोपाल को ढूँढ़ा; अंततः जब वे नहीं मिले तो द्वारिका चली गईं। मीराबाई ने अनेक लोकप्रिय पदों की रचना की। हालाँकि काव्य-रचना उनका उद‍्देश्य नहीं था। लेकिन अपने आराध्य के प्रति निकले उनके शब्द ही भजन बन गए और लोगों की जुबान पर चढ़ गए। उनके पद राजस्‍थान; गुजरात; उत्तर प्रदेश एवं बंगाल में बहुत लोकप्रिय हुए और आज भी रेडियो एवं टेलीविजन पर बजते सुने जा सकते हैं।

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Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.; 1st edition (1 January 2018); New Delhi-110002 (PH: 7827007777) Email: prabhatbooks@gmail.com
Language ‏ : ‎ Hindi
Paperback ‏ : ‎ 160 pages
ISBN-10 ‏ : ‎ 9350480344
ISBN-13 ‏ : ‎ 978-9350480342
Reading age ‏ : ‎ 18 years and up
Item Weight ‏ : ‎ 210 g
Dimensions ‏ : ‎ 22 x 14 x 2 cm
Country of Origin ‏ : ‎ India
Net Quantity ‏ : ‎ 1 Count
Packer ‏ : ‎ Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
Generic Name ‏ : ‎ Book

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